। मरीजों के साथ-साथ उपचार कर रहे पारामेडिकल स्टाफ और डॉक्टरों का भी पूरा ध्यान रख रही है। लेकिन शुरुआती दौर में डॉक्टरों और पारामेडिकल स्टाफ को इतनी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। बावजूद इसके किसी ने हिम्मत नहीं हारी और मरीजों की सेवा में लगे रहे। डॉ माधव भी उन्हीं कोरोना योद्धाओं में से हैं, जो संकट की इस घड़ी में डट कर खड़े हैं और अपना कर्तव्य इमानदारी से निभा रहे हैं।
14 घंटे लगातार काम और घर में आइसोलेशन: डॉक्टर माधव ने बताया कि वह द्वारका में रहते हैं। 13 मार्च को आदेश आया और कोविड-19 के उपचार के लिए डॉक्टरों व पारामेडिकल स्टाफ की पहली बेंच तैयार हुई। टीम को राजीव गांधी अस्पताल में तैनात किया गया। उन्हें अस्पताल आने और जाने के लिए रोज 90 किलोमीटर का सफर करना पड़ता था। 14 घंटे की ड्यूटी के बाद वह गाड़ी चलाकर घर जाते थे। घर में खुद को परिवार से दूर एक कमरे में बंद कर लेते थे। काम के लंबे घंटे और लंबा सफर करने के कारण उनकी तबीयत खराब हो गई।
अस्पताल में नहाकर घर जाता था: डॉक्टर माधव की टीम के सदस्य डॉ. संजय ने बताया कि ड्यूटी के बाद घर जाने से पहले सभी अस्पताल के बाथरूम में नहाते थे। नहाने के बाद दूसरे कपड़े पहनकर घर जाते थे। घर जाने के बाद फिर नहाना पड़ता था और उसके बाद परिवार से दूर अलग कमरे में रहना पड़ता था। डॉ. संजय कहते हैं कि इन सब के बाद भी संतोष था कि समाज और देश के लिए कुछ कर रहा हूं।
बेटी रोती रहती लेकिन उसे छूता नहीं था: डॉ. विपुल परिवार के साथ रोहिणी में रहते हैं। विपुल की पत्नी भी डॉक्टर हैं। जब विपुल की कोरोना वार्ड में ड्यूटी लगाई गई, उनके घर में बेटी का जन्म हुआ ही था, वह 30 दिन की थी। डॉ. विपुल ने बताया कि उनकी पत्नी जब खाना बना रही होती थी तो कभी-कभी बच्ची रोने लग जाती थी। वह बच्ची को रोता देखते रहते थे, लेकिन वह कोरोना संक्रमित न हो जाए, इसलिए उसे हाथ नहीं लगाते थे। वह अभी भी बच्ची को छूने से डरते हैं।