तपमान का असर गेहूं की फसल को पकने में 10 से 15 दिन तक ज्यादा समय लग रहा है। ग्लोबल लॉकडाउन से आसमान की निचली लेयर (ट्रोपोस्फेयर) में ग्रीन हाउस गैसों की परत हल्की पड़ गई है। इससे पृथ्वी की सतह से जाने वाला रेडिएशन लौट नहीं रहा है। ऐसे में रात का तापमान पिछले तीन वर्षों की तुलना में काफी कम है। दिन का तापमान भी घटा है।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (सीएसए) के मौसम विभाग ने 27 मार्च से 12 अप्रैल तक के अधिकतम और न्यूनतम तापमान और इससे कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया है। 22 मार्च से भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में लॉकडाउन है। इसका ग्लोबल असर तापमान पर पड़ रहा है। वर्ष 2017-2019 तक के तापमान के अध्ययन के आधार पर अधिकतम के मुकाबले न्यूनतम तापमान में ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है।
क्यों कम हो रहा तापमान
अध्ययन के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की हिस्सेदारी करीब आधी होती है। दुनिया भर के वाहन और उद्योग ठप पड़े होने से इसकी मात्रा काफी कम हो गई है। नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा भी घटी है। दिन का रेडिएशन सूरज से सीधे नीचे आ जाता है लेकिन रात में जमीन से ऊपर की ओर जाने वाला रेडिएशन प्रदूषण अधिक होने पर लौट आता है। पर इन दिनों यह रेडिएशन नहीं लौट रहा है। इससे रात का पारा कम हो गया है।
तापमान कम होने से गेहूं की परिपक्वता अवधि बढ़ी है। मार्च में ओलावृष्टि न होती तो अवधि बढ़ने से इस बार उत्पादन अधिक होता। लॉकडाउन के दूरगामी परिणामों का अध्ययन अभी जारी है। -डॉ. नौशाद खान, मौसम कृषि वैज्ञानिक, सीएसए
तापमान कम रह जाने से जो फसल 82 दिनों में पकनी चाहिए थी उसे 90-92 दिन लग जाएंगे। यह स्वाभाविक है। तापमान का सीधा असर फसलों पर पड़ता है। गेहूं पर इस बार असर पड़ा है। -डॉ. सोनीवीर सिंह, गेहूं अभिजनक
अप्रैल माह में तापमान का जो ट्रेंड है वह प्रभाव डालने वाला है। परिस्थितियों के हिसाब से देखा जाए तो यह किसानों के लिए अच्छा हुआ है। लॉकडाउन में कटान थोड़ी मुश्किल थी। -डॉ. करम हुसैन, हेड एग्रोनॉमी विभाग