लखनऊ [अजय जायसवाल]। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव को लेकर चले शह-मात के खेल में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के बागियों को शह क्या दी, बिफरीं मायावती ने खुद के लिए मुश्किलों भरी राह अपना ली है। विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी को सबक सिखाने की सौगंध के साथ भारतीय जनता पार्टी के प्रति जो नरम रुख बसपा मुखिया ने दिखाया है, उसके हानिकारक परिणाम आंके जा रहे हैं और अब तक उनके साथ कड़ा मुस्लिम मतों का एक वर्ग उनसे बिदक सकता है। यही नहीं, भाजपा के जो असतुष्ट अपने लिए बसपा में संभावनाएं देख रहे थे, वह भी दूरी बना लेंगें। एसी स्थिति में मायावती के लिए अपना कुनबा बढ़ाना तो दूर, सिमटते जा रहे साम्राज्य को संभालने की भी चुनौती होगी।
अब तक तो विरोधी ही मायावती पर भाजपा से साठ-गांठ का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन गुरुवार को बसपा सुप्रीमो ने खुद ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर तीखे प्रहार करते हुए उन्हें सबक सिखाने के लिए भाजपा का साथ देने तक का एलान कर दिया। इससे सूबे का सियासी माहौल एकदम से गरमा गया है। हालात इशारा कर रहे हैं कि इंतकाम की ये कहानी अगले डेढ़ बरस यानी विधानसभा चुनाव तक चलती रहेगी। फिलहाल तो नुकसान नीले खेमे में ही नजर आ रहा है।