लखनऊ, जेएनएन। लखनऊ विकास प्राधिकरण [लविप्रा] के दामन में दाग लगाने वाले अधिकारी व बाबू आज भी प्राधिकरण में ठसके से नौकरी कर रहे हैं। पैंतिस से चालीस हजार पाने वाले बाबुओं की हैसियत करोड़ों में हो गई। प्राधिकरण के कई बाबू व अफसर ऐसे हैं जिनके परिजनों व स्वयं के पास राजधानी में एक से अधिक संपत्ति है। यह काली कमाई प्राधिकरण के दामन पर दाग लगाकर कमाई गई है। गोमती नगर, ट्रांसपोर्ट नगर, जानकीपुरम, प्रियदर्शनी नगर योजना सहित प्राधिकरण की हर योजना में गड़बड़ी हुई है। इनमें स्व. मुक्तेश्वर नाथ ओझा, काशी नाथ जैसे बाबू निकाले गए। अजय प्रताप जैसे बाबू आज तक फरार हैं। वहीं सुरेंद्र मोहन जैस बाबू चंद वर्ष नौकरी की और इस्तीफा देकर राजनीति में उतर गए हैं।
लविप्रा का जानकीपुरम घोटाला अब तक सबसे बड़ा था। इसमें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने डेढ़ दर्जन अफसर व कर्मचारी को दोषी पाया था। निलंबित भी हुए थे। इस पूरे कॉकस से प्राधिकरण को अरबों की चोट पहुंची। करीब 413 भूखंड की फाइल जांच में नहीं मिली थी। लंबी जांच के बाद डेढ़ सौ भूखंडों के आसपास ही मामला गड़बड़ मिला था। गोमती नगर स्थित वास्तु खंड के छह भूखंड हो या फिर प्रियदर्शनी नगर योजना के कई भूखंडों का मामला। लविप्रा के दामन में अफसरों व बाबुओं के कॉकस से दाग लगते रहे।