मुरादाबाद, जेएनएन। काेरोना की दूसरी लहर में लगातार हो रही मौतों से दहशत का माहौल है। युवाओं के जान गंवा देने के बाद तो जीवन बचाने के लिए हर घर का व्यक्ति चिंता में है। इस बार कोरोना ने गांवों में भी पैर पसार लिए हैं। लाकडाउन में मंडियां बंद होने की वजह से किसानों का माल दिल्ली नहीं जा पा रहा है। इसकी वजह से रामगंगा नदी किनारे बसे किसानों की फसलों की बहुत बेकद्री हुई है। फल और सब्जियों के दाम ही नहीं मिल रहे हैं।
किसानों ने अपनी फसलों को लेकर तमाम अरमान पाल रखे थे। किसी की बेटी की शादी होनी थी तो कोई घर में बेटे के बहू लाने की सोच रहा था। लेकिन, खरबूजा और तरबूज पांच रुपये किलो बेचने को मजबूर हैं जबकि इन दिनों में यह दोनों ही फल 15 रुपये किलो तो थोक के भाव बिकते थे। गर्मी के सीजन का सबसे बेहतरीन फल खरबूजा और तरबूज ही कहा जाता है। इस मौसम में शरीर का तापमान कम होने पर यह फल जलापूर्ति करने के लिए वरदान माना जाता है। इन फलों की पैदावार नदियों के किनारे की रेतीली जमीन पर होती है। जायद की खेती के इन फलों की सबसे अधिक मांग रहती है। पालेज में तरबूज, खरबूजा के अलावा ककड़ी, खीरा, फूटें की भी पैदावार होती है। इनकी पैदावार के लिए किसानों को बड़ी मेहनत और लागत लगानी पड़ती है। कुंदरकी में नदी किनारे जैतवाड़ा, बांहपुर आदि बसे गांव में तरबूज और खरबूजा होता है। इसी तरह गागन नदी किनारे बसे गांवों के लोग भी पालेज लगाते हैं। ढेला के किनारे भी रेतीली जमीन में पालेज होती हैं। सम्भल रोड पर महमूदपुर माफी के आसपास के कई गांवों में सब्जी के किसान बहुत हैं। डिलारी प्रतिनिधि के मुताबिक उनके क्षेत्र के रामगंगा नदी किनारे बसे गांव मुस्तफापुर बढेरा, चटकाली, काजीपुरा, सिहाली खद्दर,सलेम सराय आदि गांवों में बड़े पैमाने पर नवंबर- दिसंबर में पालेज बोई जाती है। इस बार कोरोना ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। फसल तो अच्छी हुई है, लेकिन, बाहर माल नहीं बिकने जा रहा है। इसकी वजह से किसानों की फसलों की बेकद्री हो गई है। स्थानीय मंडियों में खरीददार बाहर से आ ही नहीं पा रहे हैं। इसका भी किसानों को सीधा नुकसान हो रहा है।