सरकारी मानक में हेराफेरी से लाखों के वारे-न्यारे ग्राम पंचायत रामनगर कला के मजरा दौलतापुर विकास खण्ड बिजुआ जिला खीरी में इंटरलॉकिंग सडक़ के काम में भ्रष्टाचार
संवाददाता युसूफ इदरीसी
ब्लाक बिजुआ की रामनगर पंचायत के मजरा दौलता पुर के ग्रामीण क्षेत्र में इंटरलॉकिंग सडक़ों के निर्माण में बड़ा घोटाला हुआ है। इसने खड़ंजा सडक़ों के निर्माण में हुए घोटालों को भी मात दे दी है। इंटरलॉकिंग सडक़ों के निर्माण में घोटाला इतनी चालाकी से हुआ है कि देखने पर नजर ही नहीं आता। तह में जाने पर घोटाले की परत खुलती है तो पता चलता है कि टाइलों की गुणवत्ता में गोलमाल से लाखों के वारे-न्यारे हुए हैं। पंचायती राज विभाग के ग्रामीण क्षेत्र में खड़ंजा सडक़ों के निर्माण पर पाबंदी लगाए जाने के बाद लखीमपुर खीरी जिले में अब ज्यादातर ग्राम पंचायतो में इंटरलॉकिंग सडक़ों का ही निर्माण हो रहा है। खड़ंजा निर्माण में घटिया और पुरानी ईंटें लगाकर भ्रष्टाचार किए जाने की शिकायतों पर पंचायती राज विभाग ने इनके निर्माण पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन इसके विकल्प इंटरलॉकिंग सडक़ों के निर्माण में मोटी कमाई के लिए ऐसी राह निकाली गई है कि गहराई से जांच किए बिना उसका पता ही नहीं चलता।
गुणवत्ता में गड़बड़ी
इंटरलॉकिंग सडक़ों में लगाई जाने वाली टाइल्स के लिए सरकार ने जो मानक तय किए हुए हैं, उसके अनुसार टाइल्स की स्ट्रेंथ 200 प्लस होनी चाहिए। सरकार के इस मानक को धत्ता बताते हुए जिले की बहुत सी पंचायतों ने 70 से 80 स्ट्रेंथ की टाइलें लगाकर इंटलॉकिंग सडक़ों का निर्माण करवाया है। सरकार ने 200 प्लस स्ट्रेंथ की टाइल्स के लिए बीएसआर (बेसिक शेड्यूल रेट) 569 से 572 रुपए प्रति हजार तय की हुई है। जिन पंचायतों में 70 से 80 स्ट्रेंथ की इंटरलॉकिंग सडक़ों का निर्माण हुआ है वहां बिल तो 200 प्लस स्ट्रेंथ की टाइलों का बनवा कर भुगतान दिखाया गया है परन्तु वास्तविक भुगतान तो 70 से 80 प्लस स्ट्रेंथ की टाइल्स का हुआ है। वास्तविक भुगतान से किए गए अधिक भुगतान की राशि का बंटवारा किन लोगो के बीच हुआ, यह जांच का विषय है।
प्रमाण पत्र में लोचा
सरकार ने इंटरलॉकिंग सडक़ों के निर्माण में लगाई जाने वाली टाइल्स की गुणवत्ता की जांच सार्वजनिक निर्माण विभाग की प्रयोगशाला में करवाए जाने की अनिवार्यता तय की हुई है। जांच के बाद प्रयोगशाला की ओर से गुणवत्ता से संबंधित प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। गुणवत्ता जांच की अनिवार्यता को धत्ता बताने के लिए भी रास्ता निकाल रखा है। प्रयोगशाला में जांच के लिए जाने वाली 50-60 टाइल 200 प्लस स्ट्रेंथ की बनाई जाती है, जो सार्वजनिक निर्माण विभाग की प्रयोगशाला उन्हें पास करते हुए प्रमाण पत्र जारी कर देती है। यह प्रमाण पत्र मिलने के बाद मौके पर जो टाइल लगाई जाती है उसकी स्ट्रेंथ तो 70 से 80 प्लस ही होती है।
ऐसे होता है लेन-देन
इंटरलॉकिंग सडक़ का निर्माण करवाने वाली पंचायत जिस टाइल निर्माता फर्म से टाइल खरीदती है उससे बिल 200 प्लस स्ट्रेंथ की टाइल की जो निर्धारित दर है उसी के हिसाब से लेती है। भुगतान के रूप में टाइल निर्माता फर्म को जो चेक दिया जाता है, वह बिल के हिसाब से ही होता है। इसके बाद जो खेल होता है उसमें टाइल निर्माता फर्म टाइल की वास्तविक लागत को काट कर शेष राशि पंचायत को नकद में लौटा देती है। अनुमान है कि यह राशि 270 से 275 रुपए प्रति हजार टाइल होती है। केन्द्र में भाजपा सरकार बनने के बाद पंचायतों को खूब पैसा मिला है। इस पैसे से पंचायतों ने बड़े पैमाने पर इंटरलॉकिंग सडक़ों का निर्माण करवाया है। कई पंचायतों ने गांव की सभी गलियों को इंटरलॉकिंग टाइलों से पक्का बनवा दिया है। ग्रामीणों की शिकायत पर अब तक टी वी की टीम ने खुलासा किया... https://www.youtube.com/watch?v=XpbUvsN_EpI