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हिन्दू विवाह कानून की धारा 25 के तहत स्थायी जीविका प्राप्त कर चुकी महिला की सीआरपीसी के तहत दायर गुजारा भत्ता याचिका मंजूर नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
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⚫ सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत एक पत्नी द्वारा दायर याचिका नहीं सुनी जा सकती, जिसे पहले हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता मंजूर किया गया था। इस मामले में तलाक की मांग करने वाली पत्नी की याचिका मंजूर कर ली गयी थी और इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील लंबित थी।
🌐कोर्ट ने तलाक की याचिकाओें को स्वीकार करते हुए पत्नी को हिन्दू विवाह कानून की धारा 25 के तहत स्थायी जीविका मंजूर की थी। सामानान्तर कार्यवाही में, पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भी गुजारा भत्ता के लिए आवेदन लगाना उचित समझा था। इस अनुरोध को मजिस्ट्रेट ने ठुकरा दिया था और हाईकोर्ट ने इस आदेश के खिलाफ संशोधन याचिका की अनुमति दी थी।
🟢 इस प्रकार, अपील में शीर्ष अदालत द्वारा इस मुद्दे पर विचार किया गया कि क्या हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता देने के बाद भी क्या सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष अलग से और रखरखाव के लिए अर्जी दी सकती है? न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की खंडपीठ ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 के दायरे की जांच की तथा कहा, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25(1) कोर्ट को अधिकार देती है कि कोई भी हुक्मनामा जारी करते वक्त वह दोनों पक्षों की स्थिति पर विचार करे कि क्या पत्नी या पति के पक्ष में कोई व्यवस्था दिये जाने की जरूरत है।
⏺️स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में कोर्ट निर्वाह के लिए भी एक आदेश जारी कर सकता है। विवाह समाप्त करने संबंधी हुक्मनामा जारी करने के दौरान कोर्ट न केवल दोनों पक्षों की आय को, बल्कि उनके स्टेटस और अन्य बिंदुओं को भी ध्यान में रखता है। कोर्ट के फैसले में मामले से संबंधित स्थायित्व का तत्व मौजूद है। हालांकि संसद ने उपधाराएं 2 और 3 के रूप में रास्ता खुला छोड़ा है और यदि 5 परिस्थितियों में किसी तरह का कोई बदलाव आता है तो पीड़ित पक्ष उपधारा दो या तीन के तहत कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है तथा हुक्मनामे में संशोधन/बदलाव का अनुरोध कर सकता है।
🔵 चूंकि संबंधित कोर्ट ने मूल आदेश धारा 25(1) के तहत जारी किया था तो वह धारा 25(2) अथवा 25(3) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करके पहले के आदेश में सुधार या बदलाव कर सकता है। हाईकोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता का आदेश करते हुए 'सुधीर चौधरी बनाम राधा चौधरी (1997) 11 एससीसी 286' मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया था।
🟤उस फैसले में बेंच ने कहा था कि मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रारंभिक आदेश जारी किया था और बाद में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत सुनवाई के दौरान धारा 24 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अंतरिम गुजारा भत्ते का आदेश दिया था। उस मामले में उस परिप्रेक्ष्य में कहा गया था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मेंटेनेंस के निर्णय के बावजूद पत्नी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत मुकदमा जारी रखने के लिए सक्षम थी, लेकिन बेंच ने मौजूदा मामले को उस मामले से पूरी तरह अलग बताते हुए कहा-
🟣 "चूंकि पार्लियामेंट ने हिंदू विवाह कानून की धारा 25(2) के तहत कोर्ट को अधिकार दिया है और उसमें एक उपाय बरकरार रखा है ताकि हुक्मनामा में संशोधन की मांग करने वाली संबंधित पार्टी को राहत उपलब्ध करायी जा सके, ऐसी स्थिति में तर्कपूर्ण बात यही होगी की गुजारा भत्ता के लिए भिन्न-भिन्न रास्ते अपनाने के बजाय इस धारा के तहत किए गए उपाय का इस्तेमाल किया जाये।
⏹️कोई भी आदमी इस स्थिति को समझ सकता है कि एक पत्नी स्थिति और मामले की गंभीरता को समझते हुए शुरू में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मेंटेनेंस सुनिश्चित करने के लिए अर्जी करना पसंद कर सकती है। ऐसे मामलों में पत्नी हिंदू विवाह कानून या ऐसे ही अन्य किसी उपायों के तहत सक्षम अदालत के समक्ष किसी भी रूप में अपना मुकदमा दायर कर सकती है, लेकिन पलटी मारना स्वीकृत तरीका नहीं हो सकता।
❇️बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर याचिका को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25(2) के तहत माना जायेगा और विचार किया जायेगा।
केस का नाम : राकेश मल्होत्रा बनाम कृष्णा मल्होत्रा
केस न. : क्रिमिनल अपील संख्या 246-247/2020
कोरम : न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित एवं न्यायमूर्ति विनीत सरन वकील : एडवोकेट अभय गुप्ता एवं फौजिया शकील
संदीप पाण्डेय
लीगल रिपोर्टर
उत्तर प्रदेश
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