पिता! कौन कहता है कि तुम नहीं हो
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कौन कहता है
कि तुम नहीं हो
पिता!
तुम हरदम रहते हो
मेरे आस-पास
मेरे विचारों में
मेरी संवेदनाओं में
मेरी अभिव्यक्ति में
मेरी सांसों में।
जब संवेदनाएं कुंठित होती हैं
तुम खड़े हो जाते हो
गुरु बनकर
देने लगते हो उपदेश
सिखाते हो सबक
जिंदगी का।
समाज में कैसे जिया जाता है
तुम बताते हो हर मोड़ पर
अंधेरे जब घेरते हैं
जिंदगी की राह
तुम खड़े मिलते हो
दिया लेकर।
कौन कहता है कि
तुम नहीं हो दुनिया में
मैं हूं तो तुम हो
आखिर तुम्हारा ही
जीवंत अंश तो हूं
तुम्हारा ही वंश तो हूं।
जब कभी चिंताएं घेरती हैं
तो याद आते हैं वो किस्से
जो तुमने सुनाए थे
खटिया पर लेटे हुए
ग़म और खुशी में संतुलन
का पाठ तुमने ही सिखाया।
हे पिता!
वो सिर्फ तुम ही हो
जिसने कमजोरी में भी
मजबूती का ज्ञान दिया
छल-प्रपंच के बीच
निश्छलता का संदेश दिया।
पिता!
मैंने तुम्हारे बुढ़ाते शरीर में भी
महसूसा है जवानी का जज़्बा
देखा है तुम्हारा वो बाहुबल
संकटकाल में भी सुनी है
तुम्हारी खनकती आवाज।
पिता!
तुम मर नहीं सकते
जब तक मैं जिंदा हूं
तुम्हारी पीढ़ियां जिंदा हैं
तुम यहीं कहीं रहते हो
मन में उम्मीदें बनकर
संशय में तरकीब बनकर
आंखों में सपने बनकर
तुम मेरे आस-पास हो पिता!
तुम मेरे साथ ही हो।
कौन कहता है
कि तुम नहीं हो
पिता!
कौन कहता है
कि तुम नहीं हो।
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((मौजूदा कालखंड में प्रचलित फादर्स डे पर पिता को महसूस करते हुए।))