लोकतंत्र में राजनीति जनता की भावनाओं और जनसमर्थन के साथ चलती है। चुनावी राजनीति में जनता जिस दल या व्यक्ति पर अपना भरोसा जताती है वही व्यक्ति नेता माना जाता है। महाराष्ट्र्र की राजनीति में कल से जो घटनाक्रम चल रहा है जो भी नेता या दल इसके पीछे हैं वे संवैधानिक प्रावधानों और जनता के भरोसे को ताक पर रख कर ऐसे कृत्य कर रहें है। महारष्ट्र के नेता खुले तौर पर जनभावनाओं का व्यापार कर रहे हैं। चुनाव के दौरान जिस तरह से नेता अपने मुद्दे और नीति को सामने रखकर जनता से वोट मांगने जाते है। जनता को उनकी नीतियां समझ आती तब जाकर जनता उन्हें वोट देती है। जनता से आप जिस नीति सिद्धांत को सामने रखकर वोट मांगते है क्या आप उसी नीति सिद्धांत पर चलकर राजनीति नहीं कर सकते हैं? अगर आप अपनी नीतियों में बदलाव करना चाहते है तो क्या आपको जनता के सामने नहीं जाना चाहिए ?
लोकतंत्र में अगर कोई भी राजनीतिज्ञ या राजनीतिक दल जनता के विश्वास का सम्मान नहीं करती है तो वे दोषी हैं। लोकतांत्रिक सरकारों ने देश को दलों में बदल दिया है और बहुमत को मनमानी करने का लाइसेंस मान लिया है। सरकारें चाहती है कि देश के सभी लोग उसकी पार्टी के समर्थक बन जाएं। मनमाने निर्णय लेने की छूट पर निश्चित तौर पर अंकुश लगना चाहिए।
और यह भी याद रखना चाहिए की जनता का विश्वास लोकतंत्र में मनमानी करने का लाइसेंस नहीं होता है। रिपोर्ट सुरेश राजपुरोहित बारवा। खबर महाराष्ट्र