भारतीय समाज प्रमुख रूप से जाति प्रधान समाज है। यहां सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख आधार जाति प्रथा रहा है। इस समय भारत मे अनगिनत जातियां एवं उपजातियां है। सभी जातियों की अपनी-अपनी विशेषताएं है। वास्तव मे जाति व्यवस्था सिर्फ भारतीय समाज की उपज तथा अनुपम संस्था है। आज हमारा समाज लगभग तीन हजाय जातियों तथा उपजातियों मे विभाजित है एवं यह प्रथा सिर्फ हिन्दुओं तक ही सीमित न होकर मुसलमानों एवं ईसाइयों तक मे भी कुछ सीमा तक प्रवेश कर गई है।
जाति का अर्थ (jati kya hai)
'जाति' शब्द अंग्रेजी का पर्यायवाची शब्द 'कास्ट' है। अंग्रेजी के 'कास्ट' शब्द का जन्म पुर्तगाली भाषा के कास्टा से हुआ है, जिसका अर्थ है नस्ल, प्रजाति अथवा प्रजातीय भेद। कास्ट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1563 मे ग्रेसियों डी ओरटा ने यह लिखकर किया था कि," कोई अपने पिता के व्यवसाय को नही छोड़ता एवं चमारों की जाति के सब लोग एक समान है।"
जाति का यह शाब्दिक भावार्थ है। जाति का वास्तविक अर्थ एक सामाजिक समूह के रूप मे लिया जाता है, यह एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसकी सदस्यता जन्म से निर्धारित होती है।
जाति की परिभाषा (jati ki paribhasha)
मजूमदार और मदन के अनुसार," जाति एक बंद वर्ग है।"
कूले के अनुसार," जब एक वर्ग पूर्णतया वंशानुक्रमण पर आधारित होता है तो हम इसे जाति कहते है।"
हावेल के अनुसार," अन्तर्विवाह और वंशानुक्रमण द्वारा प्रदत्त पद की सहायता से सामाजिक वर्गों को जमा देना ही जाति है।"
रिजले के अनुसार," यह परिवारों या परिवारों के समूहों का संकलन है जिनका एक सामान्य नाम होता है, अपने को किसी काल्पनिक पूर्वज मानव अथवा दिव्य के वंशज बतलाते है, जो एक से आनुवांशिक व्यवसाय करने का दावा करते है, तो उन लोगों के द्वारा, जो अपना मत प्रदर्शित करने के योग्य है, एक ही समुदाय के समझे जाते है।"
केतकर के अनुसार," जाति दो विशेषताओं वाला सामाजिक समूह है।
1. सदस्यता उन्ही व्यक्तियों तक सीमित रहती है, जो सदस्यों से उत्पन्न होते है एवं इस प्रकार उत्पन्न सभी व्यक्ति उसमे शामिल रहते है एवं
2. सदस्यों पर एक अनुलंघनीय सामाजिक नियम द्वारा जाति के बाहर विवाह करने पर प्रतिबंध रहता है।
2. मैकाइवर तथा पेज के अनुसार," जब स्थिति पूर्ण रूप से पूर्व निश्चित हो, ताकि मनुष्य बगैर किसी परिवर्तन की आशा के अपना भाग लेकर उत्पन्न होते हो तब वर्ग जाति का रूप ले लेता है।"
संक्षेप मे," जाति वंशानुगत व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो परम्परागत व्यवसाय करते है तथा जातीय नियमों और निषेधों का पालन करते है।"
जाति की विशेषताएं (jati ki visheshta)
जाति प्रथा की परिभाषाओं से ही इसकी प्रमुख विशेषताएं स्पष्ट हो जाती है। एन. के. दत्त ने जाति प्रथा की निम्न विशेषताएं बतालाई है--
1. जाति के सदस्य अपनी जाति के बाहर विवाह नही कर सकते, अर्थात् यह अन्तर्विवाही होता है। (हांलाकि वर्तमान समय मे अब कही-कही अपनी जाति से बाहर प्रेम विवाह भी किये जाती है।)