जाति प्रथा के प्रमुख गुण एवं दोष लिखिए।विषय सूची
जाति प्रथा के लाभ / गुण - Benefits of Jati Pratha in Hindi
अध्ययन की सुविधा के लिए जाति प्रथा के लाभको हट्टन ने तीन श्रेणियों में विभाजित किया है :
- व्यक्तिगत जीवन में जाति के कार्य,
- जातीय समुदाय के लिए कार्य,
- समाज और राज्य के लिए कार्य।
1. व्यक्तिगत जीवन में जाति के कार्य
- सामाजिक स्थिति प्रदान करना
- मानसिक सुरक्षा प्रदान करना
- सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना
(i) सामाजिक स्थिति प्रदान करना - जाति व्यक्ति के पद को जन्म से निश्चित करती है जिसे न सम्पत्ति, न दरिद्रता, न सफलता और न किसी प्रकार की विपत्ति ही परिवर्तित कर सकती है अर्थात् जन्म से ही जाति व्यक्ति को जो सामाजिक स्थिति प्रदान करती है उनमें सामान्यतः परिवर्तन नहीं होता।
(ii) मानसिक सुरक्षा प्रदान करना - जाति जन्म से ही पद और कार्यों को निश्चित कर सदस्यों को मानसिक शान्ति और सुरक्षा प्रदान करती है। जाति के आधार पर व्यक्ति को पता होता है कि वह किनसे खान-पान, मेल-मिलाप तथा विवाह आदि के सम्पर्क स्थापित कर सकता है किन-किन सामाजिक व धार्मिक क्रियाकलापों में भाग ले सकता है ?
(iii) सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना - जाति प्रथा अपने सदस्यों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है। जाति संगठन व उनकी पंचायतें व्यक्ति पर विपत्ति आने पर उसकी रक्षा व सहायता करती हैं।
2. जातीय समुदाय के लिए कार्य
- जातीय समुदाय की स्थिति का निर्धारण
- धार्मिक भावनाओं की रक्षा करना
(i) जातीय समुदाय की स्थिति का निर्धारण - जाति अपने समुदाय की स्थिति निश्चित करती है। यह कार्य मजूमदार व मदान की दृष्टि से अत्यधिक महत्व का है। उन्हीं के शब्दों में, "जाति प्रथा का एक महत्वपूर्ण कार्य समूह या समुदाय की स्थिति का निर्धारण है। कभी-कभी इस स्थिति के सुधारने में भी क्रियाशीलता होती है।(ii) धार्मिक भावनाओं की रक्षा करना - प्रत्येक जाति के अपने धार्मिक नियम होते हैं। देवी-देवता होते हैं। इनकी रक्षा जाति करती है। देसाई व हट्टन ने इसी तथ्य को स्पष्ट किया है। देसाई ने कहा,“यह जाति ही है जो लोगों के परिवर्तित हुए धार्मिक जीवन में व्यक्तियों का स्थान निश्चित करती है।
3. समाज और राज्य के लिए जाति के कार्य
- समाज के विकास और संरक्षण में सहायता करना
- संस्कृति की स्थिरता व संरक्षण करना
(i) समाज के विकास और संरक्षण में सहायता - जाति ने विभिन्न समूहों और समुदायों को एक सत्र में बांधने का कार्य किया है। भारत में प्राचीनकाल से ही अनेक प्रजातियों के लोग आये। अतः भारत में अनेक प्रजातियों के लोग भी रहते हैं। इन्हें एकता में बांधना जाति का कार्य है। जोड ने भी लिखा है : "जाति प्रथा अपने सर्वोत्कृष्ट रूप में इस विशाल देश में निवास करने वाले विभिन्न विचार, विभिन्न धार्मिक विश्वास. रीति-नीति और परम्पराएँ रखने वाले विभिन्न वर्गों को एक सूत्र में पिरोने का सफलतम प्रयास थाr
(ii) संस्कृति की स्थिरता व संरक्षण - विदेशियों के अनेक आक्रमणों के बाद भी यदि भारतीय संस्कृति का अस्तित्व बना रहा तो इसमें जाति का बहुत बड़ा हाथ है। अबेबाय ने लिखा है कि बात का पूरा विश्वास है कि भारत की जनता उस समय भी बर्बरता के पंक में नहीं डूबी जबकि सारा यूरोप उसमें डूबा हुआ था और यदि भारत ने सदा अपना सर ऊँचा रखा, विविध विज्ञानों, कलाओं तथा सभ्यता का संरक्षण और विकास किया तो इसका पूर्ण श्रेय इसकी उस जाति प्रथा को है जिसके लिए वह बहुत प्रसिद्ध है।
जाति प्रथा के दोष - Jati Pratha ke Dosh Bataen
जाति प्रथा के दोष चार दृष्टियों से स्पए किये जा सकते हैं :
- आर्थिक दृष्टि से जाति प्रथा के दोष
- सामाजिक दृष्टि से जाति प्रथा के दोष
- सांस्कृतिक दृष्टि से जाति प्रथा के दोष
- राजनैतिक दृष्टि से जाति प्रथा के दोष
1. आर्थिक दृष्टि से जाति प्रथा के दोष
(i) आर्थिक विकास में बाधक - जाति प्रथा ने सम्पूर्ण समाज को छोटे-छोटे समूहों में विभाजित कर दिया है जिनमें एकता व सामुदायिक भावना की कमी है। इससे आर्थिक क्षेत्र में पक्षपात पनपता है। समाज से एक बड़े भाग को अछूत कहकर सक्रिय आर्थिक क्रियाओं से वंचित कर दिया। इससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हुई । व्यावसायिक प्रतिबन्धों से आर्थिक क्षेत्र की प्रगति में रुकावट उत्पन्न हुई।